यह वक़्त बस कट रहा है,
जीवन यूं घट रहा है--
लम्हें क्या, सालों का हिसाब नहीं,
किरदारों में बँट रहा है|
मन उदास उदास रहता है,
मुझसे हमेशा कहता है--
ख़ुशी की कीमत, जो चूका पाए नहीं,
अब... किश्तों में कट रहा है|
हसरतें फिर भी बेलगाम हैं,
अंतर्मन का यह पैगाम है-
आज को गिरवी रख, कल को परखो नहीं-
नासमझी में रट रहा है|
यह बादल नहीं छट रहा है|
सन्नाटा नहीं घट रहा है|
इसकी गूँज कानों को झंझोड़ती है--
बारूद सा फट रहा है|